आज के पोस्ट में हम बाते करने वाले है मुद्रास्फीति की मुद्रास्फीति किसे कहते है । तो चलिए शुरू करते है मूल्य स्तरों में होने वाली सतत् वृद्धि को ही मुद्रास्फीति कहा जाता है। मुद्रास्फीति का शाब्दिक अर्थ, मुद्रा के मूल्य में कमी होता है अर्थात् मुद्रा के क्रय शक्ति में कमी आने को ही मुद्रास्फीति कहा जाता है।
मुद्रास्फीति किसे कहते है
मुद्रास्फीति के उत्पन्न होने के दो कारण होते हैं – पहला मुद्रा के प्रसार में वृद्धि तथा दूसरा वस्तु के उत्पादन में कमी माँग बढ़ने पर मूल्य में होने वाले वृद्धि दर को माँग जनित मुद्रास्फीति कहते हैं। वहीं दूसरी ओर यदि लोगों की आय स्थिर रहे, लेकिन वस्तु का उत्पादन कम हो जाए, जिससे अन्य विनिर्मित वस्तुओं की लागत बढ़ जाती है और अन्ततः वस्तु के मूल्य में वृद्धि हो जाती है। इसे लागत जन्य मुद्रास्फीति कहा जाता है।
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मुद्रास्फीति के प्रकार
मुद्रास्फीति के प्रकार निम्नलिखित हैं
- रेंगती या नम्र स्फीति (Creeping or Moderate Inflation) जब स्फीति की वार्षिक दर एक अंक में हो, तो इसे नम्र या रेंगती स्फीति कहते हैं। इस स्फीति की सबसे प्रमुख विशेषता यह होती है कि इसका पूर्वाभास किया जा सकता है तदनुसार नीति निर्धारित की जा सकती है। नम्र स्फीति को वांछित माना जाता है, क्योंकि इससे आर्थिक क्रियाएँ प्रेरित होती है।
- चलती हुई स्फीति (Walking or Troting Inflation) जब कीमते साधारण रूप से बढ़ती हैं एवं वार्षिक स्फीति दर एक अंक की होती है। दूसरे शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि जब कीमतों में वृद्धि की दर 3% से 6% प्रतिवर्ष के बीच अथवा 10% से कम हो, तो वह चलती हुई स्फीति कहलाती है।
- दौड़ती हुई स्फीति (Running Inflation) जब कीमतें तीव्रता से 10% से 20% प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती है, तो उसे दौड़ती हुई स्फीति कहते हैं। ऐसी स्फीति गरीब एवं मध्यम वर्गों पर बुरा प्रभाव डालती है। इसके नियन्त्रण के लिए शक्तिशाली मौद्रिक एवं फिस्कल उपाय अपनाने की आवश्यकता होती है, नहीं तो यह अतिस्फीति की ओर ले जाता है।
- कूदती या गैलोपिंग स्फीति (Galloping Inflation) सेमुल्सन यह मत व्यक्त करते हैं कि यदि स्फीति की वार्षिक दर दो अंकीय या तीन अंकीय हो; जैसे- 20%, 100%, 200%, तो इसे गैलोपिग स्फीति कहते हैं। गैलोपिंग स्फीति में, स्फीति की वार्षिक दर अत्यन्त ही ऊँची होती है ।
- अतिस्फीति या हाइपर स्फीति (Hyper Inflation) जब स्फीति की दर तीन अंकों से भी बहुत अधिक हो जाए, तो उसे अधिस्फीति कहते हैं। हाइपर दर्शित स्फीति की सर्वप्रथम चर्चा केगन ने की। हाइपर स्फीति की स्थिति में ती पुत्र मुद्रा बिल्कुल बेकार हो जाती है, मुद्रा से लोगों का विश्वास खो जाता है। विश्व आर्थिक इतिहास में नवम्बर, 1923 हाइपर स्फीति की दृष्टि से सबसे खराब अवधि थी, जबकि जनवरी, 1922 से नवम्बर, 1923 के बीच जर्मनी में मूल्य निर्देशांक 1 से बढ़कर 10000000000 हो गया। हंगरी की स्फीति सबसे खराब हाइपर स्फीति के उदाहरण के रूप में ली जाती है, जबकि लगभग 1 वर्ष तक स्फीति की दर 2000% प्रति माह थी और वर्ष के अन्तिम माह में मूल्य वृद्धि 42 × 10 = …..0 (1 के बाद) (24 शून्य) रही। हाल के वर्षों में सबसे अधिक स्फीति की दर जिम्बाब्वे में रिकॉर्ड की गई। अनुमानित स्फीति की दर 22.9% करोड़ है ।
- खुली तथा दबी स्फीति (Open and Suppressed Inflation) जब स्फीति पर किसी प्रकार का नियन्त्रण नहीं हो तथा मूल्य स्तर स्वतः बिना रोक-टोक के ऊपर आ जाता है, तो इस प्रकार की नीतियों के द्वारा मूल्य स्तर को एक सीमा में रखने की कोशिश करें और मूल्य स्तर उतना ऊँचा नहीं दिखाई दे जितना वह वास्तविक रूप में हो सकता है। इस स्थिति में स्फीति के लक्षण तो रहते हैं पर उभर कर ऊपर नहीं रहते।
- माँग प्रेरित स्फीति (Demand Pull Inflation) जब समग्र पूर्ति की अपेक्षा समग्र माँग को प्रभावित करने वाले कारक अधिक प्रभावी हों, इस प्रकार माँग पूर्ति से अधिक हो जाए, तो इसे माँग प्रेरित स्फीति कहते हैं। समग्र माँग की वृद्धि मौद्रिक कारकों में वृद्धि से हो सकती है; जैसे- मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि तथा वास्तविक चरों में परिवर्तन के कारण भी हो सकती है; जैसे सार्वजनिक व्यय में वृद्धि या लोगों द्वारा की जाने वाली बचत में कमी। दोनों स्थितियों में माँग प्रेरित स्फीति होगी।
- लागत जन्य स्फीति (Cost Push Inflation) लागत में वृद्धि के कारण यदि मूल्य में वृद्धि आए या वस्तुओं की पूर्ति में अत्यधिक कमी के कारण मूल्य स्तर में वृद्धि आए, तो इस प्रकार की स्फीति को लागत जन्य स्फीति कहते हैं। मजदूरी आधिजन्य (Wage Push) और लाल जन्य (Profit Push) के कारण जो कीमतों में वृद्धि होती है उससे लागत जन्य स्फीति उत्पन्न होती है। इस प्रकार की स्फीति में श्रम की उत्पादकता की अपेक्षा मुद्रा मजदूरी अधिक तेजी से बढ़ने लगती है।
मुद्रास्फीति के कारण
मुद्रास्फीति किसे कहते है भारत में मुद्रास्फीति के मुख्यतः दो कारण हैं
मौद्रिक आय में वृद्धि से सम्बन्धित कारण
- सरकार की मुद्रा तथा साख सम्बन्धी नियम
- मुद्रा के संचलन वेग में वृद्धि
- घाटे की अर्थव्यवस्था
- व्यापारिक बैंकों की साख नीति
- प्राकृतिक कारण
- मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि
- सस्ती मौद्रिक नीति
उत्पाद की मात्रा में कमी से सम्बन्धित कारण
- उत्पादन का ह्रासमान नियम के अन्तर्गत होना
- सरकार की कराधान नीति सरकार की व्यापारिक नीति
- औद्योगिक अशान्ति
- शिल्प सम्बन्धी परिवर्तन
- देश की जनसंख्या में वृद्धि
- काला धन
अन्य सम्बन्धित अवधारणाएँ
मुद्रा अवस्फीति / मुद्रा संकुचन (Deflation) यह मुद्रा स्फीति की विपरीत दिशा है। मुद्रास्फीति किसे कहते है मुद्रा अवस्फीति कीमत स्तर से गिरावट की वह अवस्था है, जो उस समय उत्पन्न होती है। जब वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन मौद्रिक आय की तुलना में तेजी से बढ़ता है।
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मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation) मुद्रा के अवमूल्यन से अभिप्राय मुद्रा के बाह्य मूल्य में कमी से होता है। जब सरकार मुद्रा का बाहरी मूल्य कम कर देती है, तब देश की एक मुद्रा इकाई के बदले में कम विदेशी मुद्रा प्राप्त होने लगती है। मुद्रा के अवमूल्यन से मुद्रा के आन्तरिक मूल्य पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता।
मुद्रा प्रत्यवस्फीति (Reflation) मुद्रा प्रत्यवस्फीति एक प्रकार से नियन्त्रित मुद्रास्फीति होती है। जब कभी मुद्रा अवस्फीति की मात्रा इतनी अधिक हो जाती है कि वस्तुओं की कीमतें बहुत नीचे गिर जाती हैं, तो सरकार कीमतों को फिर से पटरी पर लाने के लिए मुद्रा का अधिक मात्रा में निर्गमन करने लगती है, जिसे मुद्रा प्रत्यवस्फीति की अवस्था कहते हैं।
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स्टैगफ्लेशन (Stagflation) स्टैगफ्लेशन शब्द का निर्माण स्टैगनेशन व इन्फ्लेशन दो शब्दों को मिलाकर हुआ है। स्टैगफ्लेशन उस स्थिति को इंगित करता है जब मुद्रास्फीति की दर व बेरोजगारी दोनों ही उच्च अवस्था में पहुँच जाती हैं। ऐसी स्थिति में मुद्रास्फीति के साथ आर्थिक अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।