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भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ ।

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ । भारतीय  संविधान का विकास संविधान सभा द्वारा 26 नबम्बर 1949 को  पारित हुआ तथा 26 जनबरी 1950 से  लागु हुआ । संविधान (Constitution) वह वैधानिक दस्तावेज होता  है. जिसमें शासन के उन मूलभूत सिद्धान्तों का वर्णन होता है, जिनके अनुरूप किसी भी देश या राज्य के शासन का संचालन किया जाता है। किसी भी देश के संविधान से शासन के मूलभूत आदर्शों का संकेत मिलता है। साथ ही, यह भी स्पष्ट होता है कि सरकार के विभिन्न अंग किस प्रकार से कार्य करेंगे तथा उनके बीच किस प्रकार का अन्तर्सम्बंध व शक्ति  का संतुलन होगा।

Table of Contents

भारतीय संविधान का विकास का इतिहास

भारतीय संविधान का निर्माण किसी निश्चित समय पर नहीं हुआ, वरन् यह क्रमिक विकास का परिणाम है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान धीमी गति से हुआ।

इन्हे भी पढ़े 

भारतीय संविधान का विकास के इतिहास को हम दो भागों विभक्त कर सकते हैं

  1.  ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन के अन्तर्गत ।

  2.  ब्रिटेन की सरकार (क्राउन) के शासन के अन्तर्गत ।

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संवैधानिक विकास ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अन्तर्गत
  • रेग्यूलेटिंग एक्ट –  1773
  • पिट्स इण्डिया एक्ट –  1784
  • चार्टर एक्ट  –  1793
  • चार्टर एक्ट –  1813
  •  चार्टर एक्ट – 1833
  • चार्टर एक्ट – 1853
संवैधानिक विकास ब्रिटिश क्राउन के अन्तर्गत
  • भारत शासन अधिनियम  – 1858
  • भारत परिषद अधिनियम – 1861
  • भारत परिषद अधिनियम – 1892
  • भारत परिषद अधिनियम – 1909
  • भारत परिषद अधिनियम – 1919
  • भारत परिषद अधिनियम – 1935
  •  भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम – 1947 

भारतीय संविधान का विकास  कैसे हुआ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अन्तर्गत

1773 का रेग्यूलेटिंग एक्ट (Regulating Act 1773)

1773 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट का भारतीय संविधान का विकास में महत्वपूर्ण स्थान है। इस अधिनियम के माध्यम से भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी पर ब्रिटेन के संसद  के द्वारा संसदीय नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया गया।

  • इस अधिनियम के द्वारा बंगाल के गवर्नर को मद्रास और बॉम्बे के  गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा उसकी सहायता के लिए एक चार सदस्यीय कार्यकारी परिषद् का गठन किया गया। ऐसे पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड वारेन हेस्टिंग्स (Lord Warren Hastings) थे। 
  • इस अधिनियम के अंतर्गत कलकत्ता में 1774 ई. में एक उच्चतम न्यायालय की स्थापना की गई, जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश और तीन अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति किय गए थे। सर एलिजा इम्पे (Elijah Impey) इस उच्चतम न्यायालय के प्रथम)  मुख्य न्यायाधीश बने । 

पिट्स इण्डिया एक्ट, 1784

यह अधिनियम कम्पनी द्वारा अधिग्रहीत भारतीय राज्य अर्थात कम्पनी द्वारा भारत में जितने क्षेत्रों पर अधिकार था उस क्षेत्रों पर ब्रिटिश ताज (Crown) के स्वामित्व के दावे का पहला वैधानिक दस्तावेज था।

  • गवर्नर जनरल की परिषद् की संख्या चार से कम करके तीन कर दी गई। और  इस परिषद् को भारत में प्रशासन करने के लिए सैन्य शक्ति, युद्ध, संधि, राजस्व एवं देशी रियासतों  को  शक्ति प्रदान की गई।
  • इस अधिनियम का महत्व इस किय  भी है की भारत में कंपनी के अधीन  जो भी क्षेत्र थे उसे  पहली बार ब्रिटिश आधिपत्य का क्षेत्र कहा गया और  ब्रिटिश सरकार को भारत में कंपनी के कार्यों एवं इसके प्रशासन पर पूर्ण नियंत्रण ( अधिकार ) प्रदान किया गया। तकि कम्पनी किसी तरह का मनमानी नहीं कर सके ।

1786 का अधिनियम

  • इस अधिनियम के द्वारा गवर्नर जनरल को विशेष परिस्थितियों में अपने परिषद् के निर्णय को निरस्त करके अपने निर्णय को लागू
    करने का अधिकार प्रदान किया गया. साथ ही गवर्नर जनरल को प्रधान सेनापति की शक्तियाँ भी प्रदान की गई। ये दोनों अधिकार सर्वप्रथम लॉर्ड कार्नवालिस को प्राप्त हुए थे । 

चार्टर एक्ट, 1793

  • इस अधिनियम के माध्यम से कम्पनी के अधिकारों को 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया तथा नियंत्रक मण्डल के सदस्यों को भारतीय राजस्व से वेतन देने की व्यवस्था की गई। ब्रिटिश भारतीय क्षेत्रों में लिखित विधियों द्वारा प्रशासन की नींव रखी गई तथा सभी कानूनों व विनियमों की व्याख्या का अधिकार न्यायालय को प्रदान किया गया।

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ ।

चार्टर एक्ट, 1813

  •  इस एक्टू के द्वारा भारत में कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करके कुछ प्रतिबंधों के साथ सभी अंग्रेजों को भारत से व्यापार करने की खुली छूट मिल गई। किन्तु कंपनी का चाय एवं चीन के साथ व्यापार पर एकाधिकार बना रहा। इस एक्ट में भारतीयों की शिक्षा पर एक लाख रूपये की वार्षिक धनराशि के व्यय का प्रावधान किया गया। साथ ही, भारत में ईसाई मिशनरियों को धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।

1833 का चार्टर अधिनियम

ब्रिटिश भारत के केन्द्रीकरण की दिशा में यह अधिनिमय निर्णायक कदम था। इस अधिनियम की विशेषताएँ निम्नलिखित थीं

  •  इसने बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया, जिसमें सभी नागरिक एवं सैन्य शक्तियाँ निहित थीं। इस प्रकार, इस अधिनियम ने पहली बार एक ऐसी सरकार का निर्माण किया, जिसका ब्रिटिश कब्जे वाले संपूर्ण भारतीय क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण होगया  था। लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के प्रथम गवर्नर जनरल थे
  • चार्टर एक्ट, 1833 ने सिविल सेवकों के चयन के लिए खुली प्रतियोगिता का आयोजन शुरू करने का प्रयास किया। अधिनियम की धारा 87 में कहा गया कि कंपनी में भारतीयों को किसी भी पद, कार्यालय और रोजगार को हासिल करने से वंचित नहीं किया जाएगा। बाद  में यही धारा प्रशासन में भागीदारी हेतु मुख्य आधार बनी।

1853 का चार्टर अधिनियम

  • 1793 ई. से 1853 ई. के दौरान, ब्रिटिश संसद द्वारा पारित किए गए। चार्टर अधिनियमों की श्रृंखला में यह अंतिम अधिनियम था। संवैधानिक विकास की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण अधिनियम था। इस अधिनियम के द्वारा विधायी कार्यों को प्रशासनिक कार्यों से पृथक करने की व्यवस्था की गई। विधि निर्माण हेतु, भारत के लिए एक अलग 12 सदस्यीय विधान परिषद् (All इंडिया Legislative Council ) की स्थापना की गई।

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भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ  ब्रिटिश क्राउन के अन्तर्गत

भारत शासन अधिनियम, 1858

  • सन् 1858 के पश्चात् ब्रिटिश शासन के अंतर्गत भारत में किए गए सुधारों का मुख्य उद्देश्य था  1857 के विद्रोह जैसी घटना को रोकना अर्थात उन्हें दुबारा नहीं होने देना तथा साथ ही एक प्रशासनिक व्यवस्था को स्थापित करके भारत का उपयोग ब्रिटिश औपनिवेशिक हित में करना था।
  • इस अधिनियम के तहत भारत का शासन सीधे महारानी विक्टोरिया के अधीन चला गया। गवर्नर जनरल का पदनाम  को बदलकर भारत का वायसराय कर दिया गया। वह (वायसराय) भारत में ब्रिटिश ताज का प्रत्यक्ष प्रतिनिधि बन गया। इसके तहत जो पहले वायसराय बने वे थे ‘लॉर्ड कैनिंग (Lord Canning) भारत के प्रथम वायसराय ।
  • इस अधिनियम ने नियंत्रण बोर्ड (Board of Control) और निदेशक कोर्ट (Court of Director) को समाप्त कर भारत में शासन की द्वैध प्रणाली का अन्त कर दिया।
  • एक नए पद, भारत के राज्य सचिव (Secretary of State of India) का सृजन किया गया, जिसमें भारतीय प्रशासन परं संपूर्ण नियंत्रण की शक्ति निहित थी। यह सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य था, जो ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था।
  • नवंबर, 1858 को ब्रिटिश महारानी की घोषणा को भारतीय शिक्षित वर्ग ने अपने अधिकारों का मैग्नाकार्टा (Magnacarta) की संज्ञा  दी  ।

भारत परिषद् अधिनियम, 1861

  • सन् 1861 के अधिनियम द्वारा भारत में संवैधानिक विकास का सूत्रपात किया गया। इस कानून द्वारा अंग्रेजों ने ऐसी नीति प्रारम्भ की, जिसे सहयोग की नीति (Policy for Association) या उदार निरंकुशता (Benevolent Distortion) की संज्ञा दी जाती है। इसके माध्यम से ही सर्वप्रथम भारतीयों को शासन में भागीदार बनाने का प्रयत्न किया गया।
  • 1861 के अधिनियम द्वारा गर्वनर जनरल को अध्यादेश जारी करने की शक्ति दी गई। और  इस शक्ति का प्रयोग वह  अपने स्वविवेक से कर सकता था। इस अधिनियम के द्वारा पहली बार भारतीयों के प्रतिनिधित्व देने जैसी  तत्व  को शामिल किया गया था।

भारत परिषद् अधिनियम 1892

  • इसके माध्यम से केन्द्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों में अतिरिक्त (गैर-सरकारी) सदस्यों की संख्या बढ़ाई गई, हालाँकि बहुमत सरकारी सदस्यों का ही रहता था। साथ ही केन्द्रीय व्यवस्थापिका-सभा के अतिरिक्त मनोनीत सदस्यों की संख्या कम से कम 10 और अधिक से अधिक 16 निश्चित कर दी  गई।  इनमें से 10 सदस्यों को गैर-सरकारी होना आवश्यक था।
  • इस अधिनियम में गैर सरकारी सदस्यों की नियुक्ति हेतु अप्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रावधान किया गया। विधान परिषद् की शक्तियों में वृद्धि हुई। अब इसे आर्थिक नीति तथा बजट पर बहस करने की अनुमति प्राप्त हुई परन्तु मतदान का अधिकार नहीं था।
  • परिषद् के सदस्यों को जनहित से सम्बंधित मामलों में कुछ सीमाओं के भीतर प्रश्न पूछने का भी अधिकार प्राप्त हुआ। निर्वाचन पद्धति का आरम्भ किया जाना इस अधिनियम की एक प्रमुख विशेषता है। प्रान्तीय परिषदों के गैर-सरकारी सदस्य नगरपालिका, जिलाबोर्ड, विश्वविद्यालय एवं वाणिज्य मण्डल द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित किए जाते थे।

भारत परिषद् अधिनियम 1909 

  • इस अधिनियम को मॉर्ले-मिंटो सुधार (Marley Minto Reforms) के नाम से भी जाना जाता है (उस समय लॉर्ड मॉलें इंग्लैण्ड में भारत के राज्य सचिव थे तथा लॉर्ड मिंटो भारत में वायसराय थे)। मॉर्ले-मिन्टो सुधार का लक्ष्य भारत परिषद अधिनियम 1892 के दोषों को दूर करना तथा भारत में बढ़ते हुए उग्रवाद एवं क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का सामना करना था।
  • इस अधिनियम के तहत  केन्द्रीय और प्रांतीय विधानपरिषदों के आकार में काफी वृद्धि की गई । केन्द्रीय परिषद् में इनकी संख्या 16 से 60 हो गई। प्रांतीय विधानपरिषदों में इनकी संख्या एक समान नहीं थी। इसने केन्द्रीय परिषद् में सरकारी बहुमत को बनाए रखा परन्तु प्रांतीय परिषदों में गैर-सरकारी सदस्यों के बहुमत की अनुमति थी। इसने दोनों स्तरों पर विधान परिषदों के चर्चा कार्यों का दायरा बढ़ाया। जैसे- पूरक प्रश्न पूछना, बजट पर संकल्प रखना आदि।
  • भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ ।

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  • इस अधिनियम के अंतर्गत पहली बार किसी भारतीय का वायसराय और गवर्नर की कार्यपालिक परिषद् (Executive Council) के  साथ एसोसिएशन (Association) बनाने का प्रावधान किया गया।
  • सत्येंद्र प्रसाद सिन्हा वायसराय की कार्यपालिका परिषद् के प्रथम भारतीय सदस्य बने। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया था। इस अधिनियम के द्वारा भारत में प्रादेशिक चुनाव हेतु व्यावसायिक और साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व प्रणाली (Professional and Communal Representation or Separate electoral system) को अपनाया गया।
  • इस अधिनियम ने (पृथक् निर्वाचन ) के आधार पर मुस्लिमों के लिए सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व का प्रावधान किया। इसके अंतर्गत
    मुस्लिम सदस्यों का चुनाव मुस्लिम मतदाता ही कर सकते थे। इस प्रकार, इस अधिनियम ने सांप्रदायिकता को वैधानिकता प्रदान की।
  • लॉर्ड मिटो को सांप्रदायिक निर्वाचन का जनक कहा जाता है।
  • इस अधिनियम प्रेसिडेंसी कॉरपोरेशन, चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, विश्वविद्यालयों और जमीदारों के लिए अलग प्रतिनिधित्व का
    भी प्रावधान किया।

भारत शासन अधिनियम, 1919

  • 1919 के अधिनियम को मॉन्टेग्यू- चेम्सफोर्ड सुधार भी कहते है, क्योंकि इस अधिनियम के जन्मदाता भारत सचिव मॉण्टेग्यू और भारत में गवर्नर जनरल चेम्सफोर्ड थे।
  • यह अधिनियम ब्रिटिश सरकार द्वारा सुधारों का एक और तथाकथित प्रयास था। 20 अगस्त, 1917 ई. को भारत सचिव लॉर्ड मॉण्टेग्यू ने एक घोषणा की, जिसमें भविष्य के सुधारों की ओर संकेत किया गया था।
  • तत्कालीन समय में सुधारों की मांग होम आंदोलन प्रथम विश्व युद्ध आदि अनेक कारणों से यह अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम के आधार पर प्रांतों में आशिक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना की गई।
  • पार्षद कार्यपालिका  का एक ऐसा भाग था, जो गवर्नर के प्रति उत्तरदायी था तथा दूसरा भाग मण्डल था, जो प्रातीय व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था।
  • इस अधिनियम के द्वारा केन्द्र में द्विसदनात्मक विधायिका स्थापित की गई। अर्थात् केन्द्रीय विधान परिषद् का स्थान राज्य परिषद् (उच्च सदन) एवं विधान सभा (निम्न सदन) वाले द्विसदनात्मक विधानमण्डल में ले लिया।
  • राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 थी, जिसमें 34 निर्वाचित एवं 26 मनोनीत होते थे तथा उनका कार्यकाल 5 वर्ष का था। केन्द्रीय विधान सभा में 144 सदस्य थे, जिसमें से 104 निर्वाचित एवं 40 मनोनीत होते थे। उनका कार्यकाल 3 वर्ष का था। दोनों की शक्तियाँ समान थीं किन्तु, बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार सिर्फ विधान सभा को था।
  • केन्द्रीय और प्रांतीय विषयों की सूची की पहचान कर एवं उन्हें पृथक कर राज्यों पर केन्द्रीय नियंत्रण कम किया गया। केन्द्रीय और प्रांतीय विधान परिषदों को अपनी सूचियों के विषयों पर विधि बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
  • 1919 ई. के एक्ट की मुख्य विशेषता प्रान्तों में दूध-शासन) (Dyarchy) की स्थापना थी। इसके लिए केन्द्रीय और प्रांतीय विषयों को पृथक किया गया था। इसके पश्चात् प्रांतीय विषयों को पुनः दो भागों में बाँटा गया।
प्रांतीय विषयों के दो भाग

 1. आरक्षित विषय जैसे- राजस्व, न्याय, वित्त, पुलिस आदि

2. हस्तान्तरित विषय जैसे- स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि।

  • आरक्षित विषयों का शासन गवर्नर अपनी परिषद् के सदस्यों की सलाह से करता था तथा हस्तान्तरित विषयों का शासन गवर्नर भारतीय मन्त्रियों की सलाह से करता था।
  • इस अधिनियम ने सांप्रदायिक आधार पर सिक्खों, भारतीय ईसाइयों, आंग्ल-भारतीयों और यूरोपियों के लिए भी पृथक निर्वाचन के सिद्धांत को विस्तारित कर दिया।
  • इस अधिनियम ने एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया। इसी के परिणाम स्वरूप 1926 ई. में सिविल सेवकों की भर्ती के लिए केन्द्रीय लोक सेवा आयोग का गठन किया गया।
  • इसने पहली बार केन्द्रीय बजट को राज्यों के बजट से अलग कर दिया तथा राज्य विधानसभाओं को अपना बजट स्वयं बनाने के लिए अधिकृत कर दिया।
  • इसके अंतर्गत एक वैधानिक आयोग का गठन किया गया, जिसका कार्य दस वर्ष जाँच करने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करना था।

ऐसी बिच साइमन कमीशन का आगमन हुवा 1927 में

साइमन आयोग (Simon Commission)

नवम्बर, 1927 में ब्रिटिश सरकार द्वारा सर जॉन साइमन के नेतृत्व | में सात सदस्यीय वैधानिक आयोग का गठन किया, जिसका कार्य | नए संविधान में भारत की स्थिति का पता लगाना था। इस आयोग में सभी सदस्य अंग्रेज थे। अतः सभी भारतीयों द्वारा इसका विरोध किया गया। आयोग द्वारा वर्ष 1930 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी गई, जिसकी प्रमुख सिफारिशें निम्नलिखित थीं

  • प्रान्तों में द्वैध-शासन को समाप्त कर उन्हें स्वायत्ता प्रदान करना।
  • राज्यों में सरकारों का विस्तार किया जाना।
  • ब्रिटिश भारत के संघ की स्थापना करना ।
  • साम्प्रदायिक निर्वाचन व्यवस्था को जारी रखा जाए।

भारत शासन अधिनियम 1935 

भारत शासन अधिनियम 1935 का भारतीय संविधान पर बहुत ही गहरा प्रभाव रहा है यह आधुनिक भारत में पूर्ण उतरदायी सरकार के गठन में एक मिल का पत्थर साबित हुआ। यह एक लम्बा और विस्तृत दस्तावेज था , जिसमे 321 धाराएँ और 10 अनुसूचियाँ थी ।

अखिल भारतीय संध की स्थापना 
  • केन्द्र एवं राज्य इकाईयों के बीच तीन सूचियों (संघीय सूची, राज्य सूची, एवं समवर्ती सूची) के माध्यम से शक्तियों का बँटवारा। अवशिष्ट विषयों पर विधि बनाने का अधिकार वॉयसराय को दिया गया।
  • भारत के प्रांतों, चीफ कमिश्नर प्रांतों एवं देशी रियासतों को मिलाकर एक अखिल भारतीय मंच की स्थापना का प्रावधान किया गया। परन्तु यह व्यवस्था कभी अस्तित्व में नहीं आ सकी।
11 राज्यों में से 6 में द्विसदनीय व्यवस्था का प्रारम्भ |
  • बंगाल, बंबई, मद्रास, बिहार, संयुक्त प्रान्त और असम
इंग्लैण्ड में भारत परिषद की समाप्ति
  • भारत सचिव को सलाहकारों की एक टीम प्रदान की गई

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ ।भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ ।

रिजर्व बैंक की स्थापना
  • देश की मुद्रा एवं साख के नियंत्रण के उद्देश्य से
प्रांतो में द्वैध शासन की स्थापना  
  • प्रांतो में उतरदायी सरकार की स्थापना
केन्द्र में द्वैध शासन प्रणाली प्रारम्भ
  • संघीय विषयों का स्थानांतारित एवं आरक्षित विषयों के रूप में विभाजन
साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व का विस्तार
  • दलित जातियों, महिलाओं और मजदूर वर्ग के लिए प्रथम निर्वाचन की व्यवस्था
लोक सेवा आयोगों की स्थापना

1. केन्द्र में संघ लोक सेवा आयोग

2. राज्यों में राज्य लोक सेवा आयोग

3. दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त सेवा आयोग

संघीय न्यायालय का प्रावधान
  • इसके के तहत 1937 ई. में संघीय न्यायालय की स्थापना हुई। और इसके के प्रथम मुख्य न्यायाधीश सर मौरिस ग्वेयर थे।
  • 1935 अधिनियम के बारे में प. नेहरू ने कहा था यह अनेक बैंकों वाली इंजन रहित गाड़ी है तथा जिन्ना ने इसे पूर्णत: सड़ा और मूल रूप से बुरा कहा था।

क्रिप्स मिशन

  • 22 मार्च, 1942 को क्रिप्स मिशन (Cripps Mission) भारत आया। यह एक सदस्यीय आयोग था, जो सर स्टैफोर्ड क्रिप्स (Sir.Stefford Cripps) के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार द्वारा भेजा गया था। क्रिप्स मिशन के अनुसार, ब्रिटिश सरकार एक ऐसे भारतीय संघ की स्थापना करना चाहती है, जिसकी स्थिति ब्रिटिश सम्राट के अंतर्गत एक पूर्ण औपनिवेशिक स्वराज की होगी। इसे ब्रिटेन से सम्बंध विच्छेद करने की भी स्वतंत्रता होगी।
  • द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के तुरंत बाद भारत का संविधान बनाने के लिए एक सुविधान सभा की स्थापना की जाएगी, जिसमें ब्रिटिश भारतीय प्रांतों एवं देशी रियासतों दोनों के प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे।
  • ब्रिटिश सरकार इस संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को स्वीकार कर लेगी, परंतु शर्त यह है कि ब्रिटिश सरकार के प्रांतों या देशी रियासतों को यदि नवीन संविधान पसंद नहीं होगा, तो वे अपनी वर्तमान संवैधानिक स्थिति बनाए रख सकेंगे। ऐसे प्रांतों को भी अपने लिए एक संविधान बनाने का अधिकार होगा तथा उनकी स्थिति भी भारतीय संघ के समान होगी।
  • संविधान सभा और ब्रिटिश सरकार के मध्य अन्य संस्थाओं की सुरक्षा हेतु एक संधि की जाएगी। जब तक नवीन संविधान कार्यान्वित नहीं हो जाता, तब तक ब्रिटिश सरकार ही भारत की सुरक्षा के लिए उत्तरदायी होगी।
कांग्रेस द्वारा क्रिप्स प्रस्तावों को अस्वीकार के कारण
  • क्रिप्स प्रस्तावों में अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान की माँग को स्वीकार किया गया था।
  • भारत की सुरक्षा के प्रश्न पर कांग्रेस क्रिप्स प्रस्ताव से सहमत नहीं थी।
  • कांग्रेस के द्वारा संपूर्ण भारत के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की माँग की जा रही थी। लेकिन क्रिप्स प्रस्तावों में औपनिवेशिक स्वराज की ही बात कही गई थी।
  • वास्तव में औपनिवेशिक स्वराज के लिए भी कोई तिथि निश्चित नहीं की गई थी, इसी कारण महात्मा गांधी द्वारा इन प्रस्तावों को दिवालिया बैंक या भविष्य की तिथि में भुनाने वाला चेक (Post Dated Cheque) कहा गया था
  • क्रिप्स प्रस्तावों में पाकिस्तान के निर्माण की स्पष्ट व्यवस्था न होने के कारण (मुस्लिम लीग के द्वारा भी इन प्रस्तावों को अस्वीकार कर दिया गया था

वेवेल योजना, 1945

  • अक्टूबर, 1943 ई. में लॉर्ड लिनलिथगो (Lord Linlithgow) स्थान पर लॉर्ड वेवेल भारत के गवर्नर जनरल बनकर आए। लॉर्ड वेवेल ने भारत में संवैधानिक गतिरोध दूर करने एवं अनुकूल वातावरण तैयार करने के लिए 4 जून, 1945 को एक विस्तृत योजना प्रस्तुत की, जिसे वेवेल योजना कहा जाता है।
इसकी प्रमुख प्रावधान निम्नवत थीं

1. केन्द्र में नई कार्यकारिणी परिषद् का गठन किया जाएगा। परिषद् में वायसराय) एवं सैन्य प्रमुख के अतिरिक्त शेष सभी (सदस्य भारतीय) होंगे और प्रतिरक्षा विभाग वायसराय के अधीन होगा।

2. कार्यकारिणी में मुस्लिम सदस्यों की संख्या हिन्दुओं के बराबर होगी।

3. कार्यकारिणी परिषद् एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार के समान होगी। गवर्नर जनरल बिना कारण वीटो शक्ति का प्रयोग नहीं करेगा

4.द्वितीय विश्व युद्ध के बाद भारतीय स्वयं अपना संविधान बनाएंगे।

5. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान गिरफ्तार सभी नेताओं को रिहा किया जाएगा तथा शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन बुलाया जाएगा।

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ

शिमला सम्मेलन

  • 25 जून से 14 जुलाई, 1945 ई. के मध्य (शिमला में एक सर्वदलीय सम्मेलन आयोजित किया गया। सम्मेलन में कांग्रेस प्रतिनिधिमण्डल का नेतृत्व मौलाना अबुल कलाम आजाद ने किया। गाँधी जी ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया।
  •  मुस्लिम लीग यह चाहती थी कि वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् में नियुक्त होने वाले मुस्लिम सदस्यों का चयन सिर्फ वही करेगी, जिसे कांग्रेस ने अस्वीकार कर दिया। फलतः वायसराय ने शिमला सम्मेलन को विफल घोषित कर दिया।
  • इस सम्मेलन में कांग्रेस जहाँ अखण्ड भारत की मांग कर रही थी. यहीं मुस्लिम लीग पाकिस्तान के लिए अपनी जिद पर अड़ी रही। 

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ

कैबिनेट मिशन, 1946

  • ब्रिटिश प्रधानमंत्री सर क्लीमेंट एटली (लेबर पार्टी) 1 जनवरी, 1946 ई. को भारत में चल रहे राजनीतिक गतिरोध को दूर करने के लिए एक उच्च स्तरीय कैबिनेट मिशन (Cabinet Mission) भेजने का निर्णय लिया।
  • कैबिनेट मिशन के सदस्यों में सर स्टैफोर्ड क्रिप्स. ए.बी. • अलेक्जेंडर और पैथिक लॉरेंस शामिल थे। सर पैथिक लॉरिस इस मिशन के अध्यक्ष थे।
  • इस मिशन द्वारा 16 मई, 1946 को एक योजना प्रस्तुत की गई जिसके प्रमुख प्रावधान निम्नवत थे

1.ब्रिटिश भारत और देशी रियासतों को मिलाकर एक भारतीय संघ का गठन किया जाएगा। विदेश, रक्षा और संचार विभाग संघ के अधीन होगा तथा इसके लिए धन एकत्र करने का अधिकार संघ को होगा।

2. संघ की अपनी कार्यपालिका और विधानपालिका होगी, जिसमें ब्रिटिश भारत एवं देशी रियासतों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।

3. संघीय विषयों के अलावा अन्य सभी विषय और अवशिष्ट शक्तियाँ प्रांतों में निहित होंगी।

4. भारतीय संविधान के निर्माण के लिए अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के आधार पर एक संविधान सभा की स्थापना की जाएगी। इस संविधान सभा में कुल 389 सदस्य होंगे, जिनमें 292 ब्रिटिश प्रांतों के 93 देशी रियासतों के और 4 चीफ कमिश्नरों के क्षेत्र के प्रतिनिधि होंगे।

5. यह निश्चित किया गया कि लगभग 10 लाख व्यक्तियों पर संविधान सभा में एक सदस्य होगा तथा प्रांतों को संविधान सभा में प्रतिनिधित्व जनसंख्या के आधार पर दिया जाएगा।

नोट -संविधान सभा में महिला सदस्यों की संख्या 15 अनुसूचित जाति के सदस्यों की संख्या 26 तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की संख्या 33 थी।

6. देशी रियासतों का प्रतिनिधित्व भी जनसंख्या के आधार पर चुने गए प्रतिनिधियों की समझौता समिति एवं देशी रियासतों की ओर से नियुक्त की गई समिति के मध्य आपसी बातचीत द्वारा तय होना था। प्रांतों को इस बात की स्वतंत्रता थी कि, वे आपस में मिलकर अपने (पृथक शासन सम्बंधी समूह बना सकते थे।

7. एक अन्तरिम सरकार की तत्काल स्थापना की जाएगी, जिसे भारत के सभी प्रमुख राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त हो। जिसमें 14 सदस्य होंगे, इनमें 6 कांग्रेसी, 5 मुस्लिम लीग, । भारतीय ईसाई, सिक्ख और 1 पारसी सदस्य होगा।

अंतरिम सरकार का गठन

24 अगस्त, 1946 ई.) को पंडित नेहरू के नेतृत्व में भारत की पहली अन्तरिम राष्ट्रीय सरकार का गठन किया गया, जिसमें मुस्लिम लीग की भागीदारी नहीं थी।

पंडित नेहरू ने 2 सितम्बर, 1946 ई) को 11 अन्य सदस्यों के साथ अपने पद की शपथ ली, अन्य सदस्यों में से तीन मुस्लिम सदस्य थे परन्तु वे मुस्लिम लीग से सम्बंधित नहीं थे।

26 अक्टूबर, 1946 ई. को मुस्लिम लीग भी सरकार में शामिल हो गई जिसका उद्देश्य परिषद् के भीतर रहकर पाकिस्तान के लिए लड़ना था।

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ

अंतरिम सरकार (1946) धारित विभाग

  1. जवाहरलाल नेहरू – राष्ट्रमंडल सम्बंध तथा विदेशी मामले
  2. सरदार बल्लभ भाई पटेल – गृह, सूचना एवं प्रसारण
  3. डॉ. राजेंद्र प्रसाद, → खाद्य एवं कृषि
  4. जॉन मथाई – उद्योग एवं नागरिक आपूर्त
  5. जगजीवन राम –  श्रम
  6. सरदार बलदेव सिंह – रक्षा
  7. सी. एच. भाभा – कार्य, खान एवं ऊर्जा
  8. लियाकत अली खाँ – वित्त
  9. अब्दुल-रब-निश्तार – डाक, वायु, रेलवे व संचार
  10. 10. सी. राजगोपालाचारी – शिक्षा एवं कला
  11. आई. आई. चुंदरीगर – वाणिज्य
  12. . गजनफर अली खान – स्वास्थ्य
  13. योगेंद्रनाथ मंडल – विधि
  • अंतरिम सरकार के सदस्य वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के सदस्य थे। इस परिषद् के अध्यक्ष लाई माउण्ट बेटेन (वायसराय) और उपाध्यक्ष पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।अन्तरिम सरकार के सम्बंध में डा. अम्बेडकर ने कहा था कि यह एक देश की सरकार है जिसे दो राष्ट्र चला रहे हैं।
  • मुस्लिम लीग ने अनुसूचित जाति के हिंदू राजनेता योगेंद्रनाथ मंडल को विधि मंत्रालय के लिए नामित किया।26 अक्टूबर, 1946 को तीन गैर मुस्लिम लीग मुस्लिम सदस्य के स्थान पर मुस्लिम लीग के पाँच सदस्य अंतरिम सरकार में शामिल हुए।
  • 9 दिसम्बर, 1946 ई. को दिल्ली में संविधान सभा की पहली बैठक हुई, जिसका मुस्लिम लीग ने बहिष्कार किया। मुस्लिम लीग द्वारा संविधान सभा का लगातार बहिष्कार देखते ब्रिटिश सरकार ने यह निर्णय दिया कि संविधान सभा के निर्णय.. मुस्लिम बहुल क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।

माउण्टबेटन योजना 3 जून, 1947 ई.

तत्कालीन परिस्थितियों में ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लीमेंट एटली ने 20 फरवरी, 1947 को यह घोषणा की कि. ब्रिटिश सरकार 30 जून, 1948 से पहले भारतीयों को सत्ता सौंप देगी। सत्ता के निर्वाध हस्तान्तरण की व्यवस्था करने के लिए वेवेल के स्थान पर लॉर्ड माउण्टबेटन को वायसराय के रूप में भारत भेजा गया।

  • 3 जून, 1947 को माउण्टबेटन द्वारा प्रस्तुत योजना को माउण्टबेटन योजना (Mountbatten Plan) कहा जाता है। इस योजना केप्रमुख बिन्दु निम्नवत् थे
  • भारत का विभाजन भारतीय संघ और पाकिस्तान में इस योजना के अनुसार कर दिया जाए।
  • इन राज्यों की सीमा निश्चित करने के पूर्व पश्चिमोत्तर सीमांत प्रदेश और असम के सिलहट जिले में जनमत संग्रह (Referendum) कराया जाए तथा सिंध विधानसभा में वोट द्वारा यह निश्चित किया जाए कि वे किसके साथ रहना चाहते हैं।

बंगाल और पंजाब में हिन्दू व मुसलमान बहुसंख्यक जिलों के प्रांतीय विधानसभा के सदस्यों की अलग-अलग बैठक बुलाई जाए। उसमें से अगर कोई भी पक्ष प्रांत का विभाजन चाहेगा तो विभाजन कर दिया जायेगा।

संविधान सभा दो भागों में बँट जाएगी, जो अपने-अपने राज्यों लिए संविधान तैयार करेगी। दोनों राज्यों को डोमिनियन स्टेटस (अधिराज्य का दर्जा) प्रदान किया जाएगा।

देशी रियासतों को यह स्वतंत्रता होगी कि वे जिनके साथ चाहें मिल जाएँ या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाए रखें। इस योजना को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने स्वीकार कर लिया।

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भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947

माउण्टबेटन योजना के अनुसार, यह अधिनियम 4 जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद में प्रस्तुत किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 को स्वीकृत हो गया। नॉर्मन डी. पॉमर ने लिखा है कि ब्रिटिश पार्लियामेंट के इतिहास में शायद ही कोई इतना महत्वपूर्ण विधेयक हो जो इतने कम समय और इतने कम वाद-विवाद से पास हुआ हो। इस अधिनियम द्वारा निम्नलिखित प्रावधान किए गए

  1.  15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान दोनों स्वतंत्र अधिराज्यों की स्थापना हो जाएगी।
  2.  प्रत्येक अधिराज्य में एक गवर्नर-जनरल होगा, जिसकी नियुक्ति इंग्लैण्ड का सम्राट करेगा।
  3.  दोनों राज्यों की संविधान निर्मात्री सभाओं को अपने राज्यों के लिए संविधान बनाने का अधिकार होगा।
  4.  दोनों देशों के लिए अलग-अलग संविधान सभा का गठन किया जाएगा तथा वर्तमान संविधान सभा ही नये संविधान के बनने एवं लागू होने तक विधानमण्डल के रूप में, 1935 के एक्ट के तहत कार्य करेगी।
  5. दोनों अधिराज्यों की सीमा का निर्धारण करने के लिए दो सीमा आयोग (पंजाब सीमा आयोग और बंगाल सीमा आयोग) गठित किए गए जिसके अध्यक्ष सर रेडक्लिफ थे।
  6. जब तक संविधान सभाएँ, संविधान का निर्माण नहीं कर लेती हैं, तब तक संविधान सभा, विधानमण्डल के रूप में कार्य करेंगी। साथ ही विधानमण्डल के रूप में कार्य करते समय इनकी शक्तियों पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होगा।

 

संविधान सभा

संविधान सभा के विचार को व्यावहारिक रूप में सर्वप्रथम अमेरिका और फ्रांस में अपनाया गया। भारत की स्वतन्त्रता के राष्ट्रीय आन्दोलन के लम्बे कालखण्ड में अनेक अवसरों पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से संविधान सभा के गठन की माँग की गई।

  •  संविधान सभा के सिद्धान्त का दर्शन सर्वप्रथम बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में निर्मित स्वराज विधेयक में मिलता है।
  • 1922 ई. में गांधी जी ने भारतीय संविधान के निर्माण के लिए भारत की संविधान सभा की आवश्यकता पर बल दिया। हरिजन …पत्रिका में उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छा के अनुसार ही होगा।
  • अप्रैल, 1923 ई. में गठित सप्रू समिति ने ऑफ इंडिया बिल का प्रारूप तैयार किया। इसे 1925 ई. में गांधी जी की अध्यक्षता वाले दिल्ली सर्वदलीय सम्मेलन में गया। यह संविधान निर्माण की दिशा में पहला महत्वपूर्ण प्रयास था।
  • 1942 ई. में क्रिप्स मिशन ने भारत में संविधान सभा के गठन की बात को स्पष्टतया स्वीकार किया, परन्तु इसे व्यावहारिक रूप वर्ष 1946 में कैबिनेट मिशन प्रस्ताव द्वारा प्रदान किया जा सका।
  • संविधान सभा के लिए चुनाव जुलाई अगस्त, 1946 ई, हुए (ब्रिटिश भारत के लिए आवंटित 296 सीटों हेतु)। इस चुनाव में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को 208, मुस्लिम लीग को 73 एवं छोटे समूह व स्वतंत्र सदस्यों को 15 सीटें प्राप्त हुई।
  • यह स्पष्ट था कि, संविधान सभा आंशिक रूप से चुनी हुई और आंशिक रूप से नामांकित निकाय थी। इसके अतिरिक्त सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष रूप से प्रांतीय व्यवस्थापिका के सदस्यों द्वारा किया जाना था, जिनका चुनाव एक सीमित मताधिकार के आधार पर किया गया था।
  • देश के विभाजन की योजना स्पष्ट होने पर संविधान सभा की संरचना को पुनः व्यवस्थित किया गया। पाकिस्तान में शामिल होने वाले क्षेत्रों व देशी रियासतों से चुनकर आने वाले सदस्य अब भारत की संविधान सभा के सदस्य नहीं रहे।
  • अब संविधान सभा में 389 के स्थान पर 299 सदस्य रह गए जिनमें 229 सदस्य प्रान्तों से थे तथा 70 सदस्य देशी रियासतों के थे।

भारतीय संविधान सभा में निम्नलिखित 15 महिलाओं शामिल थी

1. विजयलक्ष्मी पंडित

2. राजकुमारी अमृत कौर

3. सरोजनी नायडू

4. सुचेता कृपलानी

5. पूर्णिमा बनर्जी

7. जी दुर्गाबाई

8. हंसा मेहता

9.कमला चौधरी

10. रेणुका राय

11. मालती चौधरी

12. दक्षयानी बेलायुदन

13. बेगम एजाज रसूल

14. ऐनी मस्करीनी

15. अम्मू स्वामीनाथन

  • 9 दिसम्बर, 1946 को संविधान सभा की प्रथम बैठक हुई। प्रथम बैठक में डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा को अस्थायी अध्यक्ष चुना गया।
  • 11 दिसंबर, 1946 को डॉ. राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष और एच.सी. को उपाध्यक्ष चुना गया तथाइसी दिन सर बी. एन. राव) को संविधान सभा का सवैधानिक सलाहकार नियुक्त किया गया।

उद्देश्य प्रस्ताव

  • संविधान निर्माण का प्रारम्भ 13 दिसंबर, 1946 कौ पंडित जवाहर लाल नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव (Objective Resolution) से हुआ। यही उद्देश्य प्रस्ताव भावी संविधान की रूपरेखा थी। इस उद्देश्य प्रस्ताव में 8 अनुच्छेद थे।.
  • नेहरू के उद्देश्य प्रस्ताव में भारतीय संविधान के प्रमुख उद्देश्य, जैसे सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता व उपासना का अधिकार आदि सम्मिलित थे।
  • समाज के पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों व जनजातियों और अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा की घोषणा हुई। इसी उद्देश्य प्रस्ताव में भारत को एक संप्रभु राज्य के रूप में पहचाना गया तथा विश्व शांति पर बल प्रदान किया गया।
  • नेहरू के इस उद्देश्य प्रस्ताव को ( 22 जनवरी, 1946 को सर्व सम्मति से स्वीकार कर लिया गया। इसने संविधान के स्वरूप को काफी हद तक प्रभावित किया। बाद में इसी उद्देश्य प्रस्ताव के परिवर्तित रूप से संविधान की प्रस्तावना (Preamble) बनी।

स्वतंत्रता अधिनियम द्वारा परिवर्तन

  • भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने संविधान सभा की संरचनामें निम्न परिवर्तन किए
  1.  संविधान सभा को पूर्ण रूप से संप्रभु निकाय) बनाया गया. जो स्वेच्छा से कोई भी संविधान बना सकती थी। इस अधिनिमय ने संविधान सभा को ब्रिटिश संसद द्वारा भारत के सम्बंध में बनाए गए किसी भी कानून को समाप्त करने अथवा बदलने का अधिकार दे दिया।
  2. संविधान सभा एक विधायिका भी बन गई। दूसरे शब्दों में संविधान सभा को दो अलग-अलग काम सौंपे गए, जिनमें से एक कार्य स्वतंत्र भारत के लिए संविधान बनाना था तथा दूसरा कार्य, देश के लिए सामान्य कानून लागू करना था। इन दोनों कार्यों को अलग-अलग दिन करना था। इस प्रकार संविधान सभा स्वतंत्र भारत की पहली संसद बनी।
  • जब भी इस सभा की बैठक संविधान सभा के रूप में होती थी. इसकी अध्यक्षता डॉ. राजेंद्र प्रसाद करते थे तथा जब बैठक विधायिका के रूप में होती थी तब इसकी (अध्यक्षता जी.वी. मावलंकर करते थे।
  • संविधान सभा 26 नवंबर, 1949 तक इन दोनों रूपों में कार्य करती रही। इस समय तक संविधान निर्माण का कार्य पूरा हो चुका था।

संविधान सभा की समितियाँ

संविधान सभा ने संविधान के निर्माण से सम्बंधित विभिन्न कार्य को करने के लिए कई समितियों का गठन किया। इनमें से 8 बड़ समितियाँ थीं एवं अन्य छोटी। इन समितियों एवं इनके अध्यक्ष के नाम इस प्रकार हैं:

बड़ी समितियाँ एवं उनके अध्यक्ष

1. संघ शक्ति समिति – पंडित जवाहरलाल नेहरू

2. संघीय संविधान समिति – पंडित जवाहरलाल नेहरू

3. प्रांतीय संविधान समिति, – सरदार वल्लभभाई पटेल

4. प्रारूप समिति – डॉ. भीमराव अंबेडकर सरदार

5. मौलिक अधिकारों  – अल्पसंख्यकों से सम्बंधी परामर्श समिति -सरदार वल्लभभाई पटेल

इस समिति की दो उप-समितियाँ थीं

(i) मौलिक अधिकार उप-समिति जे. बी. कृपलानी

(ii) अल्पसंख्यक उप-समिति – एच. सी. मुखर्जी

6. प्रक्रिया नियम समिति – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

7. राज्यों के लिए समिति – प. जवाहरलाल नेहरू

8. संचालन समिति – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद

  • संविधान सभा के संवैधानिक सलाहकार बी.एन.राव द्वारा संविधान का पहला प्रारूप तैयार किया गया था। इस प्रारूप में 243 अनुच्छेद एवं 13 अनुसूचियाँ थीं।

प्रारूप समिति

  • संविधान के प्रारूप को तैयार करने के लिए 29 अगस्त, 1947 ई. को प्रारूप समिति का गठन किया गया। डॉ. भीम राव अम्बेडकर इसके अध्यक्ष थे। इसमें अध्यक्ष सहित सात सदस्य थे
  1. के. एम. मुंशी (बम्बई से निर्वाचित)
  2.  मुहम्मद सादुल्ला (असम से निर्वाचित मुस्लिम लीग)
  3.  बी. एम. मित्तर
  4.  अल्लादी कृष्ण स्वामी अय्यर (मद्रास से निर्वाचित) निर्दलीय
  5.  एन. गोपाल स्वामी आयंगर (मद्रास से निर्वाचित)
  6.  डी.पी. खेतान (निर्दलीय)
  • बाद में बी. एम. मित्तर और डी. पी. खेतान के स्थान पर एन. माधव और टी.टी. कृष्णमाचारी को सदस्य बनाया गया। प्रारूप समिति के सदस्यों में से केवल दो (के. एम मुंशी एवं टी.टी. कृष्णामाचारी) कांग्रेस के सदस्य थे।

छोटी समितियाँ एवं उनके अध्यक्ष

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ

  1. संविधान सभा के कार्यों से सम्बंधी समिति- जी.वी. मावलंकर
  2. कार्य संचालन समिति –  डॉ. के. एम. मुंशी
  3. सदन समिति  – बी. पट्टाभि सीतारमैया
  4. राष्ट्रध्वज सम्बंधी तदर्थ समिति – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  5. मौलिक अधिकारों, अल्पसंख्यकों एवं जनजातियों व बहिष्कृत क्षेत्रों के लिए सलाहकार समिति  – सरदार वल्लभभाई पटेल।
  6. क्रीडेंसियल समिति –  अल्लावी कृष्णस्वामी अय्यर
  7.  वित्त एवं कर्मचारी (स्टाफ) समिति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद
  8.  हिंदी अनुवाद समिति
  9. उर्दू अनुवाद समिति
  10. प्रेस दीर्घा समिति
  11. आयुक्तों के प्रांतों के लिए समिति बी. पट्टाभि सीतारमैया
  12.  भाषायी प्रांतों से सम्बंधी आयोग
  13.  वित्तीय प्रावधानों सम्बंधी विशेषज्ञ समिति
  14.  सर्वोच्च न्यायालय के लिए तदर्थ समितियाँ – एस. वरवाचरियार
  • 30 अगस्त 1947 ई. को प्रारूप समिति की प्रथम बैठक हुई। इसके पश्चात् संविधान के प्रारूप पर 114 दिनों तक चर्चा की गई। इस दौरान तैयार प्रारूप का तीन बार वाचन (Reading) किया गया।
  • डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा के समक्ष द कॉन्स्टीट्यूशन ऐज सैटल्ड बाई व असेंबली वी पास्ड प्रस्ताव पेश किया। संविधान के प्रारूप पर पेश इस प्रस्ताव को 26 नवंबर, 1949 को पारित कर दिया गया और इस पर अध्यक्ष व सदस्यों ने हस्ताक्षर किए।
  • भारत के संविधान के पिता/आधुनिक मुन की संज्ञा डॉ. बी. आर. अंबेडकर को दी जाती है। संविधान सभा में डॉ. बी. आर. अंबेडकर का निर्वाचनपश्चिम बंगाल से हुआ था।
  • संविधान की प्रस्तावना में 26 नवंबर, 1949 का उल्लेख उस दिन के रूप में किया गया है, जिस दिन भारत के लोगों ने सभा में संविधान को अपनाया, लागू किया व स्वयं को सौंपा।
  • 26 नवंबर, 1949 को अपनाए गए संविधान में प्रस्तावना, 22 भाग, 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियाँ थीं। प्रस्तावना को पूरे संविधान को लागू करने के बाद लग किया गया।

संविधान सभा के विकास के चरण

  •  संविधान के निर्माण में संविधान सभा को 2 वर्ष 11 माह तथा 2 18 दिन लगे। अपने कार्यकाल में संविधान सभा निम्नलिखित तीन चरणों से गुजरी

आप  विकिपीडिया भी पढ़ सकते है ।

प्रथम चरण (First Stage)

  • यह चरण 6 दिसम्बर 1946 14 अगस्त, 1947 तक चला। इसमें संविधान सभा कैबिनेट मिशन द्वारा सुझाई गई सी
  • माओं के भीतर कार्य करती रही। इस चरण में पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने संविधान का उद्देश्य प्रस्तावन प्रस्तुत किया, जिसके आधार पर संविधान का प्रारूप तैयार करने की प्रक्रिया आरम्भ हुई।

द्वितीय चरण (Second Stage)

  • यह चरण 15 अगस्त 1947 से 26 1949 तक चला। इस दौरान संविधान सभा एक प्रभुत्वसम्पन्न एवं अस्थायी… संस्था के रूप में कार्य करती रही। इस दौरान संविधान के प्रारूप का संविधान सभा में वाचन किया गया व उस पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ।

तृतीय चरण (Third Stage)

  • यह चरण 27 नवम्बर, 1949 में मार्च, 1952 तक चला। इस दौरान संविधान सभा तब तक एक अस्थायी संसद के रूप में कार्य करती रहो, जब तक भारत में आम चुनाम के पश्चात् निर्वाचित प्रातिनिधि नहीं चुने गए नई संसद का निर्माण नहीं हुआ।

  • संविधान निर्माताओं ने लगभग 60 देशों के संविधानों का अवलोकन किया और इसके प्रारूप में 114 दिनों तक विचार हुआ।

संविधान दिवस

  • 26 नवंबर भारत में संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 2015 से हुई, क्योंकि यह वर्ष संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर के 125वें जन्मदिवस के रूप में मनाया गया था।

अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस

  • 15 सितंबर, 2015 को विश्व भर में अंतर्राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस मनाया गया। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2017 में एक प्रस्ताव पारित कर इस दिवस को मनाने की घोषणा की थी

भारतीय संविधान का विकास कैसे हुआ दोस्तों हमारी यह पोस्ट ऐसे स्टूडेंट सब के लिए है जो पीसीएस, स्टेट पीसीएस, बीपीएससी, बिहार एसएससी, एसएससी की तैयारी करते हैं उनके लिए ध्यान में रखते हुए इस पोस्ट को हमने तैयार किए हैं अगर पसंद ए तो शेयर जरूर कीजिए गा ।

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